सुबह उठता हूँ ,
अखबारों का न्यूज देखता हूँ ,,, इस सारे जहाँ में क्या हो रहा है , आज का मौसम कैसा है , कंही पर बारिस अपना
कहर ढाती है , कहीं ग्रीष्म की उष्णता तपन ढाती है , कुदरत का नजारा अजीब होता है ,,, जो कुछ भी होता है
इत्फाक होता है ,, कहीं प्रकृति कहर ढाती है ,, कहीं मनुष्य की पशुता मानवता का उपहास करती है , फिर सोचता
हूँ , क्या आज का मानव स्त्री को एक वस्तु समझता है , जो कि उसके माँ ,बहन , बेटी आदि के समान है क्या फ़िल्मी
संगीत में तू चीज बड़ी है =============की कल्पनाओं पर गीतकार और संगीतकार शब्दों की झंकार जब जन मानस सरोबार होती है , आज लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ भी व्यापारी करण में लिप्त हो चूका है ,, दिन प्रतिदिन
बलात्कार जैसी न्यूज को फ्रंट पेज पर छाप कर बलात्कार का बलात्कार कर रही है, कुछ अखबार दलगत भावना से ओतप्रोत होते हैं , उनकी मानसिकता न्यायिकता से परे दलगत
विशेष का कारिन्दा बन कर ही रह जाते हैं , फिर सोचने पर विवस होता हूँ , यह संपादक के सोच
का नजरिया है , या व्यवसाय परक व्यवस्था का अभिन्न अंग == जो भी हो ,,, अखबार उस दर्पण
के समान है जो झूठ नहीं दिखाता ,,,, कभी बिभाजित दर्पण आकृति विभेद उत्पन्न कर देता है ,
क्या उसी विभेद का प्रतिफल है आधुनिक संपादकों के सोच का नजरिया ,,,, जो अपने कर्तव्य मार्ग
से भटकने के लिए किंकर्तव्य विमूढ़ मनोदशा की व्यथा से व्यथित हैं ,,,,,,, कभी किसी चीज को बढ़ा चढ़ा कर लिखना , कभी -कभी स्वेच्छा पूर्वक साथ मे रहना ,लिव इन भी समय के बदलाव के साथ- साथ मामूली मित्रवत टकराव भी ज्यादातर प्राथमिक रिपोर्ट तक पहुंच जाते हैं ,, कभी कभी चाहत की दहलीज पर इंकार भी गुनहगार बन जाता है ,, ,स्वेच्छा से समर्पण , मित्रता बाद में शारीरिक - मानसिक बलात्कार के प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज करा दिए जाते हैं , स्वेच्छा पूर्वक विचरण पर पुरुष गमन
हमारी भारतीय संस्कृति नहीं हो सकती ,/ वक्त बदले रिश्ते बदले रिश्तेदार बदले ,, आज नारी अपने घर में भी महफूज [सुरक्षित ] नहीं ,, /ज्यादातर बलात्कार की घटनाओं चिर परिचितों की आकांक्षा की बलिबेदी पर कुर्बान हो जाती हैं , कुछ घरेलु हिंसा की शिकार हो जातीं हैं ,,/ कुछ पारिवारिक सम्मान की संबिदा में दफ़न हो जाती है
ज्यादा तर केस धोखा , अवमानना , शादी करने से इन्कार , गुमराह करना आदि प्रकार के दायर होते है ,,,
जो न्यूज चैनल के फायर होते हैं ,, भावना और जज्बात में रचा गया एक केस होता है ,, जो कोर्ट में पेश
होता है ,
जब जज्बात में आकर कोई काम करता है ,
उसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ता है ,
मानव मन की कुंठा , चाहत की आकांक्षा ,
क्या बलात्कार होती है ,,,/
आज वक्त बदल चूका है न्यूज चैनल , अखबार , नेट , सभी ख़बरों को मिर्च मसाले के साथ प्रस्तुति
की अभिव्यक्ति जन मानस में मिनटों की खबर तत्काल दिखा देतें हैं ,, बलात्कार प्राचीन समय से चलता
आ रहा है , राजा- महाराजाओं द्वारा सदैव होता रहा है , उस समय न मिडिया थी न राजा- महाराजाओं
के खिलाफ बोलने का साहस , , मत्स्य शासन प्रणाली में बड़ी मछली छोटी मछली को निकल जाती थी ,,
एक -एक राजाओं द्वारा कई रानियाँ रखना , उनकी इच्छा के खिलाफ परिणय करना , क्या यह बलात्कार
से कम है ,,
अरब के अरबियों द्वारा निकाह करना , कुछ दिन या रात के बाद तलाक [ परित्याग ] करना , क्या यह शादी है या
छलावा ,,, धर्मानुसार शादी करना , फिर उसका परित्याग करना , उनकी क्षीण मानसिकता का धोतक है ,,
औरत कोई वस्तु नहीं , जो पसंद नहीं आया फेकं दिया ,,, आज गरीब की गरीबी का मजाक उड़ाते अरबी
हैदराबाद जैसे जगहों पर खरीद - फरोख्त करते न्यूज चैनल और , इंटर नेट पर , भी देखे जा रहे है , दुभाषियों के माध्यम से सौदे करते हैं ,,
आखिर सरकार ऐसे लोगों पर कानून का शिकंजा क्यों नहीं कसती ,,,, क्या यह किसी बलात्कार से कम है ,,,,/
इश्क की डोली बैठा ,
वह सितमगर जा
रहा है ,
ये उलझनों की वेणियाँ भी
जहाँ को जख्म
दे रहीं ,,
बलात्कार मानवीय आंचल पर लगा हुआ , विशद आघात है जो उनके तन-मन मे सदैव काटें की तरह् चुभता रहता है, उसकी प्राणदायनी आभा भी प्राण शून्य सी प्रतीत होती है ,,,,निगाहें बुरी नहीं होती , विचार बुरे होते हैं ,, कुसंग और संस्कार के आभाव की पराकाष्ठा मानवीय सम्मान का आभाव ,, नकारात्मक सोच , हीन मानसिकता एक तरफ़ा , चाहत की प्रबलता , बलात्कार की जननी है ,, जो मन का नकारात्मक संबेग होता है ,,,
rajkishor mishra
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