हिमगिरि के कण -कण से निकली ,
जल कल की वह धार ,,
कि हे जल क्या तेरा संसार ,,,
झरने से तू ही झरता है ,,
तन मन को शांति देता है ,,
विह्वल होता है जन मानस ,,
देख कर तेरा रूप सुहावन ,,,
हे जल क्या तेरा संसार २ ,,,,
हिमगिरि धारा से निकल
निकल कर ,,,
जलधारा में तितर -वितर कर ,,,
भरता है तू बेग
कि जल क्या तेरा सन्देश ,,,,
हिम से निकल पकड़ वह डगर
गिरि खण्डों का अगर-तगर ,
करती है उसका विच्छेदन
वसुधा का अंतस्तल भी करता
है उससे रगड़ -झगड़ ,,
हे जल क्या तेरा सन्देश ,,,,
चौरस मैदानों में आता ,
देख कर छवि जन -जन हर्षाता ,,,,
कल कल की ध्वनि गुंजन होता ,,,
जीव -जंतु का मंगल होता ,,,,
हे जल तेरा क्या सन्देश ,,
हे तेरा क्या संसार ,,,,,,
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